भारत की सानिया मिर्जा अपने टेनिस करिअर के अंतिम ग्रैंड स्लैम आस्ट्रेलियाई ओपन के मिश्रित युगल फाइनल में अपने जोड़ीदार रोहन बोपन्ना के साथ पहुंच कर भी अपने सातवें ग्रैंडस्लैम के साथ विजयी विदाई नहीं ले पाईं। यदि सानिया और बोपन्ना की जोड़ी जीत जाती तो भारत के लिए यह 34वां ग्रैंडस्लैम खिताब होता।
भारत के लिए अब तक लिएंडर पेस ने 14, महेश भूपति ने 12, सानिया मिर्जा ने 6 व रोहन बोपन्ना ने 1 खिताब जीता है। सानिया ने महिला युगल में दूसरे दौर में हारने के बाद मिश्रित युगल में हमवतन जोड़ीदार 42 साल के रोहन्न बोपन्ना के साथ 12वीं बार ग्रैंडस्लैम फाइनल में पहुंच दिलवा दिया कि भले ही वे 36 साल की हो गर्इं लेकिन अभी भी उसमें जीत की भूख कायम है।
फाइनल में शानदार खेल का प्रदर्शन कर सानिया व बोपन्ना ने पहले सेट में जरूर ब्राजील के लुईसा स्टेफनी व राफेल मातोस को कड़ी टक्कर दे पहला सेट ट्राईब्रेकर तक ले गए। लेकिन दूसरे सेट में अपना वे जलवा नहीं दिखा पाए जिसके दम पर वे खिताबी मुकाबले तक पहुंचे थे। ब्राजील की जोड़ी ने भारतीय जोड़ी को सीधे सेटों में 7-6, 6-2 से हराकर अपना पहला ग्रैंडस्लैम जीतते हुए सानिया के 7वें ग्रैंडस्लैम के साथ विजयी विदाई के सपने को तोड़ दिया।
खिताबी मुकाबले से पहले सानिया बोपन्ना के साथ रोमांचक सेमीफाइनल मैच में जब दो बार की विम्बलडन विजेता अमेरिका की के. डिजायरी व ब्रिटेन के नील स्कप्सी की जोड़ी को 1 घंटे 52 मिनट चले मुकाबले में एक-एक सेट 7-6, 6-7 की जीत के बाद सुपर टाईब्रेकर सेट में 10-6 से जीत दर्ज की तो विश्वास नहीं हुआ कि वे 2016 यानी सात साल बाद ग्रैंडस्लैम के 12वें फाइनल में पहुंच चुकी हैं।
जीत के बाद बोपन्ना के साथ याद ताजा करते हुए कहा जब उसने 14 साल की उम्र में पहला मिश्रित मैच खेला उस समय उनके जोड़ीदार बोपन्ना ही थे और आज अंतिम ग्रैंडस्लैम में भी वे मेरे साथ हैं।सानिया ने कहा कि उसने अपना पहला पेशेवर मैच मेलबर्न में खेला था और अंतिम ग्रैंडस्लैम का मैच भी यहीं खेलकर खुश हैं। हां, यह दुख जरूर है कि यहां वे जीत के नजदीक पहुंच कर अपने बेटे के सामने विजयी विदाई नहीं ले पाईं।
यदि जीत मिलती तो मेरे करिअर का कुल सातवां व तीसरा आस्ट्रेलियाई ओपन ग्रैंडस्लैम खिताब होता। इससे पहले वे तीन महिला युगल मार्टिना हिंगिस के साथ 2015 में विम्बलडन व अमेरिकी ओपन तथा 2016 में आस्ट्रेलियाई ओपन तथा तीन मिश्रित युगल 2009 में आस्ट्रेलियाई ओपन, 2012 में फ्रेंच ओपन महेश भूपति के साथ व 2014 में ब्राजील के ब्रूनो सोरेस के साथ अमेरिकी ओपन जीत चुकी हैं।
मिर्जा इस माह में दुबई में अपना अंतिम पेशेवर टूर्नामेंट खेलेंगी। देखना है कि वे अपनी जोड़ीदार के साथ खिताबी जीत के साथ अपने पसंदीदा खेल को अलविदा कह पाने में कामयाब हो पाएंगी। आस्ट्रेलियाई ओपन में बेहतर प्रदर्शन के बाद सानिया इस माह की शुरुआत में एटीपी प्रतियोगिता के पहले ही मैच में अपनी जोड़ीदार के साथ मात खा गईं। इसलिए अपने अंतिम टूर्नामेंट में उनके लिए बड़ी चुनौती होगी खिताबी जीत के साथ विदाई की।
सानिया भले ही अब अपने खेल जीवन के अंतिम मैच में कैसा ही प्रदर्शन करे, पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि सानिया ने भारत ही नहीं एशिया की महिलाओं के लिए लंबे समय तक टेनिस के मैदान में जलवा दिखाते हुए विश्व स्तर पर जो प्रदर्शन कर महिला टेनिस को जो नई ऊंचाइयां दी और महिलाओं को इस खेल से जोड़ने का अप्रतिम प्रेरणादायक कार्य किया है, उसके लिए वे पूरी दुनिया में भारत की बेहतरीन टेनिस खिलाड़ी के रूप में सदैव खेल प्रेमियों के दिलों में रहेंगी और प्रेरणा बनी रहेंगी।
यह बात भी सही है कि आने वाले कई साल में कोई भी महिला टेनिस खिलाड़ी नजर नहीं आ रही जो सानिया की तरह अपने खेल के दम पर देश का नाम विश्व टेनिस में दमका सके। भारतीय टेनिस में पुरुष वर्ग में जिस तरह लिएंडर पेस व महेश भूपति के बाद जो खालीपन आया है वही खालीपन महिला वर्ग में भी साफ दिखाई दे रहा है।