Bru Community Tripura : त्रिपुरा का नैसिंगपारा और यहां बस रहा ब्रू समुदाय। 26 साल के लंबे वक़्त के बाद अब वोट का अधिकार हासिल कर पाया है। ब्रू समुदाय 1997 में जातीय हिंसा की मार झेलने के बाद मिजोरम छोड़ त्रिपुरा के राहत शिविरों में आ बसा था। बिजली कनेक्शन, पानी की आपूर्ति, शौचालय और बेहतर ज़िंदगी के संघर्ष के साथ शिविर में रहने वाले लगभग 40,000 ब्रू जो मिजोरम की सीमा से लगे त्रिपुरा की सबसे ऊंची पहाड़ी श्रृंखला जम्पुई में बसे हैं। इस बात से खुश दिखाई देते हैं कि इस बार वह वोट कर पाएंगे, हालांकि सवाल यह भी है कि उनका वोट किसे जाएगा ?
वोट देने के अधिकार
ब्रू और मिजो समुदाय के बीच 1996 में बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा हुई थी जिसके बाद से ब्रू समुदाय ने त्रिपुरा में शरण ली थी। यह समुदाय 26 साल से राहत शिविरों में रह रहा है। बुनियादी सुविधाओं के सुख से दूर ब्रू समुदाय को यहां बसाए जाने को लेकर कई विवाद हुए लेकिन त्रिपुरा का हमेशा इन्हें यहां नहीं बसाए जाने की ओर मत दिखाइ दिया। ब्रू समुदाय की एक महिला ललफकावमी ब्रू , वह पांच बच्चों की मां हैं, इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहती है कि इतने सालों में यहां सिर्फ एक बदलाव हुआ है। यह बदलाव ‘वोट का अधिकार’ है।
ललफकावमी ब्रू कहती हैं कि हमारा मिजोरम वापस जाने का कोई सवाल ही नहीं है। वह कहती हैं कि गुजरा हुआ वक्त हमें परेशान करता है। हमारे कई पूर्वजों को भी इस भूमि में दफनाया गया है। यह अब हमारा घर है। TIPRA मोथा नेता प्रद्योत देबबर्मा द्वारा इस संबंध में केंद्र को लिखे जाने के तुरंत बाद त्रिपुरा सरकार ने औपचारिक रूप से नवंबर 2019 में पहली बार राज्य में ब्रुस के पुनर्वास की अनुमति देने की मांग का समर्थन किया था। लंबी लड़ाई और संघर्ष के बाद त्रिपुरा में अब तक लगभग 14,000 विस्थापित ब्रूओं को मतदान का अधिकार दिया गया है।
जनवरी 2020 में आखिरकार केंद्र सरकार, मिजोरम सरकार, ब्रू नेताओं और त्रिपुरा सरकार के बीच समझौता हुआ और उन्हें बसाने का निर्णय लिया गया.समझौते के मुताबिक अब यहां हर योग्य विस्थापित परिवार को आसान किस्तों में भूखंड लेकर घर बनाने का हक दिया गया है। नाइसिंगपारा के अलावा, आशा पारा, हज़चेरा, नाइसाऊ पारा, कसकाऊ पारा, खाकचांग पारा और हम्सा पारा के राहत शिविरों में परिवारों को पूरे त्रिपुरा में पुनर्स्थापित किया जा रहा है।
वोट के अधिकार के बाद नेताओं की नजर में है समुदाय
ब्रू समुदाय के नेता चकबेला मेस्का कहते हैं कि अब हमारा वैल्यू थोड़ा बढ़ा है। समझौते के बाद परियोजनाएं शुरू की गई हैं। जहां पानी सप्लाई नहीं था वहां टंकी नजर आई, बिजली के ट्रांसफॉर्मर और आसपास के पक्के घरों का निर्माण दिखाई देने लगा है। ब्रू डिसप्लेस्ड यूथ एसोसिएशन के गोविंद माशा कहते हैं कि महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनेता अब हमसे मिलने आ रहे हैं। वे शायद ही कभी पहले शिविर में प्रवेश करते थे। हमें उनसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। यह बदलाव वोट का अधिकार मिलने के बाद दिखाई दिया है।