अस्पताल में जन्म लेने वाली एक बच्ची को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। जबकि, बच्ची जिंदा थी। डाक्टरों ने बच्ची को एक बड़े डिब्बे में बंद कर परिवार को दे दिया। लेकिन, परिजन जब बच्ची का शव कर लेकर घर पहुंचे और जब डिब्बे को खोला तो वह जिंदा थी।
इसके बाद लोगों के होश खड़े हो गए और फिर बच्ची को लेकर अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों ने देखने से मना कर दिया। दिल्ली पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मामले में संज्ञान लेते हुए इस बच्ची की जान बचाने के लिए अस्पताल के आला चिकित्सकों से संपर्क साधा, जिसके बाद बच्ची का इलाज शुरू हुआ। फिलहाल बच्ची का इलाज चल रहा है।
इसमें डाक्टर वेंटिलेटर की व्यवस्था कर रहे थे कि अचानक 15 लोगों की भीड़ आइसीयू के अंदर चली गई। स्थानीय कांस्टेबल को देखकर वे आइसीयू में आ गए। बाद में मरीज के परिजनों ने हंगामा किया और यह वीडियो बना लिया। वीडियो में बच्ची को दस्ताने के गत्ते के डिब्बे में बंद दिखाया गया है। बच्ची अभी भी बहुत गंभीर है और जीवन रक्षण प्रणाली पर है।
घटना पर संज्ञान ले महिला आयोग
भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश महिला मोर्चा अध्यक्षा योगिता सिंह ने मामले को बड़ी लापरवाही बताया और कहा कि इतनी बड़ी लापरवाही के बावजूद अभी तक दिल्ली महिला आयोग चुप क्यों है? उन्होंने कहा कि इस मामले में आयोग को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए। उन्होने कहा कि हर छोटे-बड़े मुद्दे पर बोलने वाली स्वाति मालीवाल का इस बड़ी लापरवाही और संवेदनशील मुद्दे पर चुप रहना उन्हें सवालों के कटघरे में खड़ा करता है।
उपमुख्यमंत्री इस्तीफा दें : नेता प्रतिपक्ष
मामले में दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने दिल्ली सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा है कि केजरीवाल सरकार दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं को विश्वस्तरीय बताती है और एलएनजेपी अस्पताल को अपना सर्वश्रेष्ठ अस्पताल कहती है। इस घटना ने दिल्ली सरकार के सारे खोखले दावों की पोल खोल दी है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय का काम देख रहे उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया में अगर थोड़ी भी नैतिकता बची है तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
विशेषज्ञों ने क्या बताया
इंग्लैंड के मैनचेस्टर रियल ओल्ड हम अस्पताल में काम कर रहे नवजात विशेषज्ञ डा राहुल चौधरी ने नेचर जर्नल 2022 के हवाले से कहा कि 22 सप्ताह के भ्रूण के जीवित रहने की दर 35 फीसद, 23 सप्ताह के भ्रूण के जीवित रहने की दर 38-40 फीसद, 24 सप्ताह के भ्रूण के जीवित रहने की दर 60 फीसद है। इसलिए 23 सप्ताह से कम के भ्रूण के माता-पिता को जानकारी और परामर्श देना चाहिए। इस तरह की घटनाएं भारत में दो साल पहले दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में हुई थीं।
एम्स के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा कि नियम के मुताबिक पहले बच्चे की हरकत देखते हैं अगर वह नही है तो उसके अन्य लक्षणों पर गौर करते हैं वह भी नहीं है तो इसीजी करते हैं । इसीजी में सीधी लाइन दिखे तो बचने की संभावना नहीं होती। हालांकि ब्रेन के स्टेमसेल रिफ्लेक्स पर भी गौर करने के बाद मृत घोषित किया जाता है। इस मामले में जांच की जाएगी।