सुप्रीम कोर्ट आज बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए एक गैंगरेप कांड के सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने सजा में छूट देते हुए पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था.
ऐसे में इन दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर एक रिट याचिका के अलावा कई राजनीतिक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से भी याचिकाएं दायर की गई थी, जिन पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच सुनवाई करेगी.
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने केस की सुनवाई से खुद को कर लिया था अलग
इससे पहले प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 22 मार्च को इस केस को तत्काल सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था और याचिकाओं की सुनवाई के लिए एक नई बेंच गठित करने पर सहमति जताई थी.
दरअसल 4 जनवरी को जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच के सामने यह मामला आया था, लेकिन जस्टिस त्रिवेदी ने बिना कोई कारण बताए मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.
बिलकिस के दोषियों की रिहाई ने अंतरात्मा को झकझोर दिया’
वहीं इस दोषियों की रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से दायर जनहित याचिकाएं शीर्ष अदालत के पास पेंडिंग हैं.
उन्होंने अपनी याचिका में कहा, ‘बिलकिस बानो के बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देश भर में कई आंदोलन हुए हैं.’ याचिका में कहा गया है, ‘जब देश अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, तो सभी दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया गया था और उन्हें सार्वजनिक रूप से माला पहनाई गई तथा उनका सम्मान किया गया एवं मिठाइयां बांटी गईं.’
गौरतलब है कि इस घटना के वक्त 21 साल की रही बिलकिस बानो पांच महीने की गर्भवती भी थी. गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे में आग की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान उसके साथ गैंगरेप किया गया था और उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी, जिनमें तीन साल की एक बेटी भी शामिल थी.