हिमालय की सुंदर पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित अमरनाथ हिंदुओं का सबसे अधिक आस्था वाला पवित्र तीर्थस्थल है। अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई के महीने में शुरू होती है जो शिव भक्तों के लिए बहुत महत्व रखती है।
अमरनाथ की खासियत पवित्र गुफा में बर्फ से शिवलिंग का बनना है, प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फानी बाबा’ भी कहा जाता है।
मां पार्वती ने जाना मुंडमाला का रहस्य
पुराणों में वर्णित है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, कि आप अजर-अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का रहस्य क्या है? शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला में जितने भी मुंड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं। देवी पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं। इस पर शिव बोले ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है। भगवान शिव ने माता पार्वती से एकांत और गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा जिससे कि अमर कथा कोई अन्य जीव ना सुन पाए क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता है वह अमर हो जाता। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमरनाथ की गुफा ही वह स्थान है जहां भोलेनाथ ने पार्वती को अमर होने के गुप्त रहस्य बताए थे।
कद्रू के पुत्र कबूतरों ने सुनी कथा
भोलेनाथ ने जीवन के गूढ़ रहस्य की अमर कथा अपनी अर्धांगिनी देवी पार्वती को सुनाना शुरू किया,जिसमें उन्होंने जगत का सबसे बड़ा रहस्य, सृष्टि का आदि और अंत सब कुछ बताया। पर कथा सुनते-सुनते पार्वतीजी को निंद्रा आ गई और वह सो गईं, इस बात का महादेव को आभास नहीं हुआ, वे अमर होने की कथा सुनाते रहे। लेकिन गुफा में पहले से ही मौजूद दो सफेद कबूतर श्रीशिवजी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में हूँ हूँ कर रहे थे, शिवजी को लग रहा था कि देवी पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रही हैं।
इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली। कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वतीजी की ओर गया जो सो रही थी। शिव जी ने सोचा कि अगर पार्वती सो रही है, तब इस कथा को सुन कौन रहा था। तभी उन्हें दोनों कबूतर दिखाई दिए, शिवजी उनका वध करना चाहते थे क्योंकि उनके अमर हो जाने पर सृष्टि का संतुलन बिगड़ सकता था। इस पर कबूतरों ने विनती की, हे भोलेनाथ जीवन और मृत्यु के दाता तो आप ही हैं। यदि आप हमें मार देंगे तो आपकी अमर कथा का महत्व नहीं रह जाएगा। आपकी कथा असत्य सिद्ध हो जाएगी। इस पर शिव जी ने कबूतरों को प्राणदान दे दिया और उन्हें आर्शीवाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे। मान्यता है कि यह कबूतर का जोड़ा तब से अमर हो गया एवं अमरनाथ जाने वाले कई श्रृद्धालुओं ने उन्हें देखने का दावा भी किया है। इस तरह से यह गुफा अमरकथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा पड़ा
(नोट: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यता और लोक मान्यता पर आधारित है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं भी हो सकता। सामान्य हित और ज्ञान को ध्यान में रखते हुए यहां इसे प्रस्तुत किया जा रहा है।)